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अ॒भि॒वृत्य॑ स॒पत्ना॑न॒भि या नो॒ अरा॑तयः । अ॒भि पृ॑त॒न्यन्तं॑ तिष्ठा॒भि यो न॑ इर॒स्यति॑ ॥

English Transliteration

abhivṛtya sapatnān abhi yā no arātayaḥ | abhi pṛtanyantaṁ tiṣṭhābhi yo na irasyati ||

Pad Path

अ॒भि॒ऽवृत्य॑ । स॒ऽपत्ना॑न् । अ॒भि । याः । नः॒ । अरा॑तयः । अ॒भि । पृ॒त॒न्यन्त॑म् । ति॒ष्ठ॒ । अ॒भि । यः । नः॒ । इ॒र॒स्यति॑ ॥ १०.१७४.२

Rigveda » Mandal:10» Sukta:174» Mantra:2 | Ashtak:8» Adhyay:8» Varga:32» Mantra:2 | Mandal:10» Anuvak:12» Mantra:2


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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (सपत्नान्) शत्रुओं पर (अभिवृत्य) आक्रमण करके (नः) हमारे (याः-अरातयः) जो शत्रुता करनेवाली-हमारी धन सम्पत्ति का हरण करनेवाली जो शत्रुसेना है, उस पर आक्रमण करके (पृतन्यन्तम्) हमारे साथ संग्राम करते हुए शत्रुगण पर (अभि०) आक्रमण करके तथा (यः) जो (नः) हम पर (इरस्यति) ईर्ष्या करता है, उस पर (अभि तिष्ठ) आक्रमण करके स्वाधीन कर, स्ववश कर ॥२॥
Connotation: - राजा को इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि शत्रु कौन है, परसेना क्या-क्या अपहरण कर रही है और संग्राम करता हुआ शत्रुगण कितना है और कौन-कौन राष्ट्र के अन्दर इर्ष्या करनेवाले हैं, उन सबको अपने अधीन करे ॥२॥
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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (सपत्नान्) शत्रून् (अभिवृत्य) आक्रम्य (नः याः-अरातयः) अस्माकं या खलु अदानवृत्तिकाः, अपि तु हरणकर्त्र्यः परसेनाः (अभि०) अभिवृत्य-आक्रम्य (पृतन्यन्तम्) संङ्ग्रामं कुर्वन्तं गणम् (अभि०) अभिवृत्य आक्रम्य (यः-नः) योऽस्मान् (इरस्यति) ईर्ष्यति “इरस् ईर्ष्यायाम्” [कण्ड्वादि०] तम् (अभितिष्ठं) स्वाधीनी कुरु ॥२॥